Father Property Rights: क्या 2025 में बेटियों को नहीं मिलेगा पिता की संपत्ति में हिस्सा? जानिए सच

Published On: August 3, 2025
Father Property Rights

भारत में बेटियों के संपत्ति अधिकारों पर समय-समय पर अदालतों द्वारा कई महत्वपूर्ण फैसले दिए गए हैं। समाज में अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या बेटियों को पिता की संपत्ति में हिस्सा मिलेगा या नहीं? हाल ही में हाईकोर्ट के एक फैसले की चर्चा तेज हो गई है, जिसमें यह दावा किया गया कि कुछ परिस्थितियों में बेटियों को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिल पाएगा।

यह विषय हर परिवार और खासकर महिलाओं के लिए काफी अहम हो गया है। बीते वर्षों में सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट ने महिलाओं के अधिकारों को लेकर कई दिशा-निर्देश दिए हैं।

समाज में बेटियों को बराबरी का हक दिलाने के लिए हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में 2005 में बड़ा संशोधन हुआ था, लेकिन अब कुछ नए आदेश और कानूनी स्पष्टीकरण आने के बाद फिर से बहस छिड़ गई है कि किन परिस्थितियों में बेटी को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिल सकता।

Daughter Rights On Father Property

हाईकोर्ट का हालिया फैसला सीधे-सीधे यह नहीं कहता कि सभी बेटियों को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बेटियों को संपत्ति में अधिकार है, लेकिन यह कुछ खास स्थितियों पर निर्भर करेगा।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के 2005 में हुए संशोधन के बाद बेटियों को पैतृक संपत्ति में बेटे के समान कानूनी अधिकार मिल गया है। पैतृक संपत्ति यानी वह संपत्ति, जो परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है, उसमें बेटी और बेटे दोनों का समान हक है। शादी के बाद भी बेटी का यह हक बना रहता है।

हालांकि, अगर बात “स्व-अर्जित संपत्ति” की करें, यानी वह संपत्ति जो पिता ने खुद कमाई या खरीदी है, तो उसकी स्थिति अलग है। उस संपत्ति का पूरा अधिकार पिता के पास होता है और वे उसे अपनी इच्छा से किसी को भी दे सकते हैं।

यदि पिता ने अपनी संपत्ति का बंटवारा वसीयत या गिफ्ट डीड के माध्यम से बेटियों के नाम नहीं किया है, तो बेटी उस संपत्ति की दावेदार नहीं बनती। अगर पिता ने अपने जीवनकाल में पूरी संपत्ति बेटे या अन्य किसी के नाम कर दी है, तो बेटी उसका कानूनी दावा नहीं कर सकती।

हाईकोर्ट का यह भी कहना है कि कुछ विशेष परिस्थितियों में बेटी को पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा—जैसे यदि बेटी ने पोस्ट या कोर्ट ऑर्डर के जरिए पिता से रिश्ते खत्म कर लिए हैं या खुद परिवार से अधिकार छोड़ दिया है, या पिता की संपत्ति पर कोई कानूनी प्रतिबंध (जैसे सरकारी जब्ती) हो गया है, तब भी हक नहीं बनता।

किसे मिलेगा और किसे नहीं मिलेगा हक?

पैतृक संपत्ति के मामले में बेटी और बेटा दोनों को जन्म से बराबर का अधिकार मिलता है—चाहे बेटी विवाहित हो या अविवाहित। यदि पिता की मौत के बाद वसीयत नहीं बनी है, तो बेटी को भी बेटों की तरह हिस्सा मिलेगा।

स्व-अर्जित संपत्ति पर, पिता की मर्जी ही अंतिम है। अगर उन्होंने बेटी को संपत्ति से वंचित करते हुए संपत्ति किसी अन्य के नाम वसीयत कर दी, तो बेटी दावेदार नहीं रह जाती। लेकिन अगर वसीयत नहीं बनी है, तो सामान्य उत्तराधिकार के तहत बेटी को भी हिस्सेदारी मिल सकती है।

कुछ मामलों में, कोर्ट ने यह भी माना है कि यदि बेटी ने खुद अपने अधिकार छोड़ दिए, या लिखा-पढ़ी में संपत्ति पर दावा न करने का संकल्प बनाया है, तो भी वह संपत्ति पर दावेदार नहीं हो सकती।

अधिकार पाने की प्रक्रिया

अगर कोई बेटी पिता की संपत्ति में अपना हक चाहती है, तो पहले यह देखना होता है कि संपत्ति किस प्रकार की है—पैतृक या स्व-अर्जित। अगर पैतृक संपत्ति है, तो अदालत में केस करके, साक्ष्य प्रस्तुत कर, अपना हिस्सा हासिल किया जा सकता है। स्व-अर्जित संपत्ति में यदि कोई वसीयत नहीं बनी है, तो उत्तराधिकार प्रमाण पत्र के जरिए दावा किया जा सकता है।

किसी भी दावे में जरूरी दस्तावेज—पैदाईशी प्रमाण पत्र, पिता और बेटी की पहचान संबंधी दस्तावेज, परिवार का रिकॉर्ड और अगर हो सके तो संपत्ति के कागजात होना जरूरी है। दीवानी अदालत में दावा दायर करने के बाद कोर्ट सबूतों को देखकर फैसला देती है।

सरकार और न्यायपालिका की मंशा

सरकार और अदालतें चाहती हैं कि बेटियों को संपत्ति के मामले में बराबरी मिले। 2005 के संशोधन से पहले बेटियों के अधिकार सीमित थे, लेकिन अब समाज की सोच और कानून दोनों बदल रहे हैं।

जस्टिस की भावना यही है कि बेटियों को नाजायज तरीके से उनके हक से वंचित न किया जाए, लेकिन व्यक्तिगत, पारिवारिक या कानूनी वजहों से कभी-कभी बेटी हकदार नहीं रह जाती।

निष्कर्ष

हाईकोर्ट का हालिया फैसला पूरी तरह से सभी बेटियों पर लागू नहीं होता, बल्कि खास परिस्थितियों और संपत्ति के प्रकार पर निर्भर करता है। सामान्यतः पैतृक संपत्ति में बेटियों का उतना ही अधिकार है जितना बेटों का, लेकिन स्व-अर्जित संपत्ति पर पिता की मर्जी चलती है।

कानून का उद्देश्य बराबरी दिलाना है—इसलिए बेटियों या परिवार वालों को पहले अपनी स्थिति और अधिकारों की पूरी जानकारी रखनी चाहिए, ताकि सही रास्ता चुन सकें और फर्जी सोशल मीडिया अफवाहों में न आएं

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