परिवार और संपत्ति को लेकर कानून में सालों से तरह-तरह के सवाल उठते रहे हैं, खासकर ससुराल पक्ष की संपत्ति को लेकर दामाद के अधिकार को लेकर। हाल ही में, हाईकोर्ट के एक अहम फैसले ने इस बहस पर दो टूक स्पष्टता ला दी है।
यह फैसला देशभर के लोगों के लिए बड़ा मार्गदर्शन साबित हुआ है, जिनके मन में हमेशा यह सवाल रहता है कि यदि बेटी की शादी किसी परिवार में हो जाती है, तो क्या उसके पति यानी दामाद को ससुर की संपत्ति में कोई कानूनी अधिकार मिलता है?
परिवार के सदस्यों, खासकर बेटियों और उनके पति को लेकर संपत्ति-विवाद में अक्सर कोर्ट-कचहरी के केस सामने आते रहते हैं। समाज में भी यह गलतफहमी बनी रहती है कि शादी के संबंध के आधार पर दामाद को भी ससुर की संपत्ति में हिस्सा मिल सकता है, लेकिन नया कानूनी फैसला इस भ्रम को दूर करता है।
आइये जानते हैं कि ससुर की संपत्ति के अधिकार को लेकर क्या है ताजा हाईकोर्ट का फैसला, और दामाद के लिए क्या हैं कानून के प्रावधान।
Property Rights 2025
हाईकोर्ट के अनुसार, हिंदू उत्तराधिकार कानून और संपत्ति नियमों के अनुसार दामाद ( बेटी का पति ) का ससुर ( यानी पत्नी के पिता ) की संपत्ति पर सीधे तौर पर कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
ससुर की संपत्ति पर सबसे पहले अधिकार उनकी संतान (बेटा-बेटी) का होता है, न कि दामाद का। यानी जब तक पत्नी जिंदा है या बेटी को वारिस के रूप में नामित किया गया है, तब तक सिर्फ उसे ही अधिकार मिलेगा। दामाद का अधिकार न तो ससुर के जीवित रहते और न ही मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति पर बनता है।
यह फैसला दरअसल एक ऐसे मामले में आया, जहां दामाद ने अपने ससुर के घर या संपत्ति पर अधिकार और हिस्सा मांगा था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शादी का संबंध खुद-ब-खुद किसी व्यक्ति को उसकी पत्नी के मायके की यानी ससुराल की संपत्ति में हिस्सेदार नहीं बना देता। दामाद का नाम अगर वसीयत या गिफ्ट डीड में नहीं है, तो कोई मालिकाना हक नहीं बनता।
कुछ मामलों में, जब ससुर अपनी संपत्ति का उत्तराधिकार तय नहीं करते यानी कोई वसीयत नहीं लिखते, तो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के मुताबिक उनकी संपत्ति बेटा-बेटी में बराबर बंटती है।
बेटी के जीवनकाल में दामाद का केवल अप्रत्यक्ष संबंध होता है – उसे अपनी पत्नी के जरिए संपत्ति का लाभ तभी मिल सकता है, जब पत्नी को संपत्ति मिले और वह खुद कानूनी वारिस है। यदि पत्नी की मृत्यु हो जाती है, तो फिर संपत्ति उनके बच्चों (ससुर के नाती-नातिनी) को मिलती है।
संपत्ति अधिकार की पूरी प्रक्रिया और शर्तें
हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 के अनुसार अगर कोई व्यक्ति बिना वसीयत के (इंटेस्टेट) मरता है, तो उसकी संपत्ति सबसे पहले उसकी संतान और पत्नी में बराबर बंटती है। दामाद को किसी भी स्थिति में ‘कानूनी वारिस’ नहीं माना जाता। मतलब उसकी पत्नी अगर जीवित है तो ससुर की संपत्ति में सिर्फ उसका अधिकार होगा।
अगर बेटी की मृत्यु हो गई है, और पीछे नाती-नातिनी (संतान) हैं, तो वो संपत्ति उनके नाम ट्रांसफर हो जाएगी। दामाद को ना तो अपने नाम पर संपत्ति लिखाने का अधिकार है और न ही वह अपने बल पर ससुर की संपत्ति बेच सकता है या उसमें रह सकता है, यदि ससुर या पत्नी ने वैधानिक माध्यम से इसे स्वीकृत न किया हो।
यदि ससुर ने वसीयत (Will) बनाई है और उसमें दामाद का नाम लिखा है, तो उस संपत्ति पर दामाद को हक मिल सकता है। लेकिन यह पूरी तरह ससुर की मर्जी पर निर्भर करता है।
वहीं, अगर दामाद परिवार की जिम्मेदारी उठा रहा हो या ससुराल में लंबे समय से रह रहा हो, तब भी सिर्फ देखभाल या भावनात्मक आधार पर संपत्ति का अधिकार नहीं बनता। कोर्ट के अनुसार, सिर्फ कानूनी और दस्तावेजी अधिकार सर्वोच्च हैं।
कानून का मकसद और सामाजिक प्रभाव
संपत्ति विवाद और पारिवारिक कलह को रोकने के लिए ही ये प्रावधान बनाए गए हैं। कई बार शादी के बाद दामाद ससुराल में अधिकार जताने लगता है, जिससे परिवार में तनाव और झगड़े बढ़ते हैं। कोर्ट के ताजा फैसले से स्पष्ट हो गया है कि ससुर के जीवित रहते या मृत्यु के बाद भी दामाद बिना कानूनी हक के संपत्ति नहीं ले सकता।
सरकार और अदालतें समय-समय पर जागरूकता फैलाने का प्रयास करती रही हैं, ताकि बेटियों और उनकी संतान के हक को सुरक्षित रखा जा सके। महिलाओं के संपत्ति में बराबर अधिकार के कानून लागू हो चुके हैं, लेकिन दामाद को कानूनन वारिस नहीं माना जाता।
निष्कर्ष
हाईकोर्ट के ताजा फैसले ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि दामाद का ससुर की संपत्ति पर कोई सीधा कानूनी अधिकार नहीं है। संपत्ति केवल पत्नी या फिर उनकी संतान के ही नाम होगी, जैसा कानून या वसीयत में लिखा गया है।
दामाद को तभी संपत्ति मिलेगी जब ससुर ने वसीयत में उसका नाम स्वेच्छा से जोड़ दिया हो। ऐसे में संपत्ति को लेकर कोई भ्रम न पालें, सभी नियम और कागजी प्रक्रिया सही रखें, और कानून व्यवस्था का पूरा सम्मान करें।